उत्तराखंड में टिहरी की रानियां पहनती थी नथ भाग -4
सिद्धबली न्यूज़ डेस्क
नथ का गढ़वाल कुमाऊं में इतिहास
कोटद्वार। उत्तराखंड में टिहरी की रानियां नथ पहनती थी। पहाड़ की महिलाएं रोजाना उसे सुबह पहनती और रात को उतार देती हैं। रोजाना इतनी वजनी नथ को पहनकर काम करना उनके लिए मुश्किल होता।
इसलिए नथ का वजन और साइज छोटा होता गया। आज सिर्फ खास मौकों पर ही महिलाएं नथ पहनती हैं। पहले 5 तोले से लेकर 6 तोले तक की नथ महिलाएं पहनती थी जिस की गोलाई 35 से 40 सेंटीमीटर तक होती थी।
महिलाओं के नथ से ही पता चलता था कि परिवार कितना संपन्न है क्योंकि जब भी परिवार में मुनाफा होता था तो महिला की नथ का वजन बढ़ा दिया जाता था।
नथ, बुलाक बेसर, फूली का प्रचलन
नथ का सनातन धर्म, बुद्ध धर्म और जैन धर्म या सुहाग की निशानी से सदियों तक कोई लेना देना नहीं था। डॉ शिव प्रसाद डबराल, रोमिला माथुर, महाजन की इतिहास की किताबों से पता चलता है की भारत में 1500 BC में नथ,बुलाक बेसर,फूली का प्रचलन नहीं था।