बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में 75 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव रखा है। उन्होंने प्रदेश में ओबीसी वर्ग को आबादी के अनुपात में आरक्षण देने की बात कहते हुए यह प्रस्ताव रखा है। साल 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर उनका यह नया दांव माना जा रहा है। गौरतलब है कि प्रदेश सरकार 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकती है। ऐसे में इस तरह का दांव चलकर नीतीश कुमार ने गेंद पीएम मोदी के पाले में डाल दी है। इससे पहले नीतीश ने जातीय जनगणना और आर्थिक सर्वे पेश कर चुके हैं।
गौरतलब है कि साल 2022 में सुप्रीम कोर्ट भी कह चुकी है कि 1992 में मंडल आयोग द्वारा तय आरक्षण की 50 फीसदी सीमा को खत्म नहीं किया जा सकता। यह कोटा एससी/एसटी और ओबीसी श्रेणी के लिए है, जबकि 10 फीसदी कोटा ईडब्लूएस के लिए है। असल में किसी राज्य में कोटा बढ़ाने की शक्ति प्रदेश सरकार को नहीं है। केवल तमिलनाडु ही एकमात्र प्रदेश है, जहां पर 69 फीसदी आरक्षण है, लेकिन इसकी कहानी बिल्कुल अलग है।
कर्नाटक में भी चुनाव से पहले कांग्रेस ने 75 फीसदी कोटे का वादा किया था। वहीं, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों ने अपने कोटा की सीमा बढ़ाने की कोशिश करते हुए मांग कर चुके हैं। यह भी गौरतलब है कि साल 2021 में ही सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र सरकार के प्रावधान को रद्द किया था, जिसके तहत मराठा कोटा 50 परसेंट से अधिक हो रहा था। तब जजों ने संविधान के 102वें संसोधन का हवाला दिया था।